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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।

उत्तर -

अयोध्याकाण्ड के स्पष्ट रूप से दो खण्ड हैं- पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध। पूर्वार्द्ध खण्ड में जो महत्व और प्रधानता राम के चरित्र में दिखाई पड़ती है वही महत्व और प्रधानता उत्तरार्द्ध खण्ड में भरत के चरित्र में दृष्टिगोचर होती है। वास्तव में देखा जाए तो तुलसी ने अयोध्याकाण्ड के उत्तरार्द्ध में भरत के चरित्र को इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि वे उसके प्रधान नायक बन गये हैं।

भारतीय काव्यशास्त्र में नायक के चार प्रकार बताए गए हैं - धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीर ललित और धीर प्रशान्त। भरत धीरोदात्त कोटि के नायक हैं। धीरोदात्त नायक के लक्षण बताते हुए कहा गया है कि उसे विनीत, मधुर, दक्ष, प्रिय वचन, लोकप्रिय, शुचि, वाकपटु, अभिजात्य, स्थिर, युवा, बुद्धिमान, उत्साही, कलावान, प्रज्ञावान, आत्मसम्मानी, तेजस्वी, धार्मिक, शास्त्रज्ञ और सांस्कृतिक होना चाहिए। शास्त्रीय दृष्टि से बताये गए नायक के सभी गुण भरत के चरित्र में किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। सामान्य रूप से नायक उस पात्र को माना जाता है जो कथा का नयन करे और उसे आगे बढ़ाये। इस दृष्टि से भरत अयोध्याकांड के उत्तरार्द्ध के नायक लगते हैं। भरत के आदर्शवादी व्यक्तित्व से राम, लक्ष्मण, जनक, शत्रुघ्न, मुनिगण, देवता, वशिष्ट, सीता और कौशल्या आदि सभी पात्र प्रभावित हैं। वास्तव में यदि उत्तरार्द्ध खण्ड की कथा पर विचार किया जाए तो भरत का चरित्र इतना प्रमुख है और इतना अहं स्थान रखता है कि यदि उसे निकाल दिया जाए तो कथा का यह अंश अपनी शालीनता और महत्व खो बैठेगा।

भ्रातृप्रेम - भरत के चरित्र की प्रधान विशेषता भ्रातृप्रेम है। भरत को अपने ज्येष्ठ भ्राता राम से बहुत प्रेम है। ननिहाल से लौटकर आने पर जब उन्हें यह समाचार मिलता है कि राम वनवास कर रहे हैं तो वे अत्यधिक दुःखी हो उठते हैं और स्वयं को राम वन गमन का कारण समझकर मौन रह जाते हैं।

भरतहिं विसरेउ पितु मरन सुनत राम बन गौन।
हेतु अपनपटु जानि जिय थकित रहे धरि मौन॥

भरत के राम के प्रति प्रेम का वर्णन कठिन है। उसकी पवित्रता का वर्णन बड़े-बड़े महात्मा भी नहीं कर सकते। प्रेमी भरत की इच्छा है कि सीता और राम के चरणों में उनका प्रेम बराबर बना रहे.

तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा। निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा॥
मन ही मन मागहि बरु एहू। सिया राम पद पदुम सनेहू॥
भरत जैसा राम का सनेही इस जगत में दुर्लभ है। तभी तो कवि को कहना पड़ा है -
भरत सरिस को राम सनेही। जगु जप राम राम जप जेही॥

विमाता भक्त - भरत को अपनी माता कैकेयी के प्रति क्षोभ है क्योंकि उसके कारण ही उन्हें पिता का वियोग मिला और राम जैसे भाई को भी चौदह वर्ष के लिए वन में भटकना पड़ा। उन्होंने कैकेयी को फटकार लगाते हुए कहा -

जब तैं कुमति कुमत जियँ ठयउ। खंड खंड होइ हृदय न गयऊ॥
वर मांगत मन भइ नहिं पीरा। गरि न जीभ मुँहु परेउ न कीरा॥
नप प्रतीति तोहिं किमि कीन्हीं। मरनकाल विधि मति हरि लीन्ही॥

इसी क्षुभित अवस्था में जब वे कौशल्या के पास जाते हैं तो उन्हें (भरत को) देखते ही कौशल्या उठकर दौड़ीं, उनको चक्कर आ गया और मूर्च्छित होकर गिर पड़ीं। भरत ने उन्हें उठाया और अपनी आत्मग्लानि व्यक्त की तो कौशल्या संभलकर उठी और उन्होंने भरत को हृदय से लगा लिया तथा उनके नेत्रों से अश्रु गिरने लगे। उन्होंने भरत को प्रबोध देते हुए कहा -

अबहुं बच्छ बलि धीरज धरहू। कुसमउ समुझि सोक परिहरहू॥
जनि मानहु हियं हानि गलानी। काल करम गति अघटित जानी॥

पितृभक्ति - भरत का अपने पिता के प्रति भी सच्चा स्नेह है। ननिहाल से लौटने पर जब उनको अपने पिता के दर्शन नहीं होते हैं तो वे व्याकुल हो जाते हैं। जब कैकेयी उनको सूचना देती है कि पिता तो स्वर्ग सिधार गये तो भरत विषाद के कारण व्याकुल हो उठते हैं -

सुनत भरतु भए बिबस विषादा। जनु समहमेउकरि वे हरि नादा॥
तात- तात हा तात पुकारी। परे भूमि तल व्याकुल भारी॥
कवि ने भी भरत की पितृभक्ति के बारे में कहा है -
पितु हित भरत कीन्ह जसि करनी। सो मुख लाख जाइ नहि बरनी।

सीता के प्रति भक्ति - भरत श्रद्धा की सजीव प्रतिमा है। उनके मन में जैसे राम के प्रति श्रद्धा है। उसी प्रकार सीता के प्रति भी अपूर्व श्रद्धा का भाव है। उदाहरण के लिए जब भरत चित्रकूट की ओर जा रहे थे तो पेड़ के पास उन्हें स्वर्ण की घुंघरी दिखाई दी। उसे उठाकर उन्होंने श्रद्धा सहित अपने सिर पर रख लिया और उनके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी, यथा-

कनक बिन्दु दुइ चारिक देखे। राखे सीय सीय सम लेखे।
सजल बिलोचन हृदय गलानी। कहत सखा सुन वचन सुबानी॥

करुणा और दया - भरत के चरित्र में उदारता और दया का भाव है। इसीलिए वे किसी पर अत्याचार होता हुआ नहीं देख सकते। जब शत्रुघ्न मंथरा को अपनी लात से प्रहार करते हैं जिससे उसका कूबड़ टूट जाता है और सिर फट जाता है, फिर उसके बाल पकड़कर घसीटने लगते हैं तो भरत के मन में दया का भाव आ जाता है और वे उसे छुड़वा देते हैं .

सुनि रिपुहन लखि नख सिख खोटी लगे घसीटन धरि-धरि झोंटी॥
भरत दयानिधि दीन्हि छुड़ाई। कौशल्या पहि गे दोउ भाई॥

विनम्रता - भरत के चरित्र में विनम्रता का गुण है। उनमें अहंकार कदापि नहीं है। वे प्रत्येक व्यक्ति से बहुत ही नम्र होकर वार्तालाप करते हैं। वाणी में कहीं भी कटुता दिखाई नहीं पड़ती।

अनासक्त और त्यागी - भरत के चरित्र का एक अनन्य गुण है अनासक्ति और निर्लिप्तता। राम के प्रेमी होते हुए भी उनमें यह गुण प्रखर रूप से देखने को मिलता है। वे राज्य पर अधिकार राम का मानते हैं। इसीलिए राज्य पद को प्राप्त करके भी वे उसके प्रति अपनी अनासक्ति दिखाते हैं और चित्रकूट पर समस्त परिजन, पुरजनों को लेकर राम को वापस लाने के लिए पहुँच जाते हैं।

निःस्वार्थता - भरत के ऐसे त्यागमय जीवन के कारण ही उनमें स्वार्थ की भावना लेशमात्र भी नहीं रह जाती है। उन्हें स्वार्थपूर्ण भाव से अत्यधिक घृणा है। इसीलिए तो माता कैकेयी की बातों को सुनकर उनके तन-बदन में आग सी लग जाती है। वे अपनी माता को बुरा-भला भी कहते हैं। निःस्वार्थ भाव के कारण ही भरत का चरित्र निष्कलंक और अद्वितीय बन पड़ा है।

धर्मशील - भरत के चरित्र का एक गुण यह भी है कि वे अत्यधिक धर्मशील हैं। धर्म में उनकी आस्था है। वे धर्म के विरुद्ध कोई भी कार्य करना पसंद नहीं करते। विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना करते हैं तथा तीर्थस्थानों पर पहुँचकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। ब्राह्मणों का सम्मान करते हैं, धर्मवत् आचरण करते हैं एवं धर्म के विरुद्ध आचरण करने से वे भय खाते हैं।

भक्ति भावना - भरत एक ओर तो राम को अपना मानकर उनके प्रति प्रेम तथा श्रद्धा की भावना व्यक्त करते हैं और दूसरी ओर वे राम को परम ब्रह्म मानकर उनकी आराधना भी करते हैं। राम उनके सर्वस्व हैं। उनके भाव में दास्य भाव की भक्ति के दर्शन भी होते हैं। भरत अपने को दास और राम को अपना स्वामी मानते हैं और सदैव रामनाम का जाप करते हैं -

पुलक गात हिय सिय रघुबीरू। जीह नामु जप लोचन नीरू।

गुरु भक्त - राम की भांति भरत भी अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धावान हैं। उनके प्रति उनके मन में आस्था है तथा निष्ठा है। वे गुरु के आदेश को सर्वोपरि मानते हैं।

व्यवहार कुशल - भरत में व्यवहार कुशलता का गुण भी पर्याप्त मात्रा में है। वे एक पवित्र और सवृति वाले आदर्श व्यक्ति हैं। इसके साथ ही उनके चरित्र में व्यवहार कुशलता भी दिखाई पड़ती है।

शीलवान - के भरत के चरित्र में भी शील का गुण अपनी पराकाष्ठा पर है। उनके इस गुण कारण ही सभी व्यक्ति उनके दास बन जाते हैं। भरत के शील, नम्रता, भक्ति आदि गुणों का बखान तो स्वयं सरस्वती भी करती हैं -

भरत सील गुन विनय बड़ाई। मायप भगति भरोस भलाई॥
कहत सारबहु कर मति सींचे। सागर सीप कि जाहिं उलीचे।

कुशल प्रशासक - भरत एक कुशल प्रशासक हैं। उन्हें अयोध्या की राज्य व्यवस्था तथा प्रजापालन की चिन्ता है। उसी का परिणाम है कि जब वे चित्रकूट जाने लगे तो उन्होंने अपने ऐसे सेवकों को बुलवाया जो स्वप्न में भी धर्म से नहीं डिग सकते थे और उन्हें सब समझाकर आवश्यक स्थानों पर नियुक्त कर दिया।

पुनीत आचरण भरत मनसा वाचा कर्मणा राम के भक्त हैं। इसलिए वे रात-दिन राम के बारे में ही सोचते रहते हैं। इसी कारण उनकी भावनाओं का प्रभाव उनके मुख पर ही नहीं बल्कि आचरण पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भरत अयोध्याकाण्ड के उत्तरार्द्ध के नायक हैं। कवि ने उनके चरित्र में प्रेमशील की पराकाष्ठा संयोजित की है। डॉ. उदयभानु सिंह ने लिखा है "भरत का चरित्र निष्कलंक है। उसमें धर्मशीलता, लोकवीरता, स्नेह और भक्ति का सामंजस्य है। उनकी निःस्वार्थता, भ्रातृप्रेम और कर्तव्य परायणता की महिमा अद्वितीय है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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